First night in hostal

हेलो फ्रेंड्स जैसा कि मैंने आपने पहले पोस्ट में बताया कि कैसे मैं कॉलेज गया अब आगे ।।
हास्टल मिल जने के बाद मैं अपना समान अपने अलमारी में शिफ्ट किया हास्टल में एक रूम में चार स्टूडेंट्स को रखते थे जिसमें मैं अपने रूम में पहले  गया था

धीरे धीरे साम हुई तो एक लड़का आया विष्णु पटवा वो बोला मुझे भी यही रूम मिला है उसने भी अपना सामान रखा और अपना बेड लगा लिया उसके पापा भी साथ आये थे ।और वो भी एक रात हम लोग के साथ रुके ।। पहली बार मिलने के कराण कोई किसी से कुछ ज्यादा बात नही कर रहा था  बहुत ओड लग रहा था  भूख लग रही थी घर पे चार बार खाना खाया करता था  बाद में लड़के बताये 8 बजे खाना मिलता है

भूख बहुत लग रही थी 8 बजते ही कैंटीन पहुच गए हम लोग
देखे तो लड़के सब लाइन लागए हुये थे हम थाली लेकर   लाइन लगा लिए  ।। खाने में वो दम कहा जो मम्मी के खाने में दम था ।। भूख तो लगी थी खा लिए ।।

जैसे ही सोने गया घर कि याद आने लगी मम्मी हमेशा सोने से पहले मेरे सिर की मसाज़ करती थी उसके बाद ही मैं सोता था  मैं थोड़ा इमोशनल हो गया बहुत सोने की कोशिस कर रहा था लेकिन नींद आ ही न रही थी

किसी तरह सुबह हुई वाशरूम में लाइन लगी हुई थी जल्दी से फ्रेश व्रेश होकर तैयार हो गया सब क्लास के लिए चल दिये
मैं बस सब के ड्रेस ही देख रहा था बात ये थी न कि मैं अपना ड्रेस गांव में ही सिल्वा लिया था जो अच्छा नही था सब लोग मुझसे बेटर लग रहे थे सब कुछ ऐसा लग रहा था मानो मैं ही ऐसा लड़का हुन जो गांव से हुन सब कुछ डिफरेंट बिल्कुल फ्रेशर नार्मल लड़का ।।

7:30 से क्लास थी   पहली क्लास एलेक्ट्रिकक की प्रोफेसर फरहत सर् पढ़ाते थे पहला दिन थियोरम पढ़ा रहे थे समझ मे नही आया बहुत अच्छे से समझा रहे थे सर समझ आ गया पहला दिन क्लास सब नार्मल था अच्छा गया

बहुत लोगों से हाय हेलो हुवा ।। दिक्कत सबसे ज्यादा ये थी कि दो बार ही खाना मिलता था मोर्निंग में 10: 30 बजे लंच टाइम और साम में 8 बजे ।। बहुत भूख लग जाती थी ।। उससे भी दिक्कत तो लंच टाइम में होता था आधे घंटे मिलते थे उसमे भी लंबी लाइन लगति थी अक्सर दाल सब्जी एक दूसरे के ऊपर गिर जाया करती थी ।।। ऐसा जयाद होता था कि लंच कर नही पाते थे लंच ओवर हो जाता था  भाग दौड़ भारी लाइफ हो गयी थी

दो दिन बीत गए किसी तरह अब मेरे तीनो रूम मेट भी आ  गए थे तीनो सब पार्टनर बहुत अच्छे थे विष्णु , प्रत्युष ,यशवंत , और मैं धर्मेंद्र ।। बाकी की कहानी नेक्स्ट पोस्ट में

English translation.


Hello friends, as I told you in the first post, how I went to college now.

 After getting the hostel, I shifted my uniform in my wardrobe and kept four students in a room in the hostel in which I had gone to my room earlier.




 Slowly, then a boy came, Vishnu Patwa said that I have got this room too, he also kept his belongings and put his bed, his father also came with him and he too stayed with us one night.  Due to meeting for the first time, no one was talking much to anyone, he was feeling very hungry, used to eat four times at home and later told the boys to get food at 8 o'clock.




 I was feeling very hungry, we reached the canteen as soon as 8 o'clock

 Seeing that the boys were all lined up, we took the plate and lined it up.  Where is the power in food, which was the strength of the mother's food.  Was hungry and ate.


 As soon as I went to sleep, I remembered my mother always massaging my head before going to sleep, I used to sleep only after that, I became a little emotional, trying to sleep a lot, but I couldn't sleep.


 Somehow, there was a line in the washroom in the morning, after getting ready for a fresh dress, everyone went to class.

 I was just looking at everyone's dress, it was not that I had taken my dress in the village itself, which was not good, everybody looked better than me, everything seemed as if I was the only boy who was from the village  Everything is absolutely fresh normal boy.




 From 7:30, the class was the first class, Professor Farhat Sar of Electrician was teaching the first day, he was teaching the theorem, he did not understand, he was explaining it very well, Sir understood that the first day the class was all normal.


 Hi hello to many people.  The biggest problem was that food was available only twice in the morning at 10:30 in the lunch time and at 8 in the evening.  Used to get very hungry.  Even there was a problem in lunch time, half an hour was found, there was also a long line in it.  It used to be that they were not able to have lunch, lunch was over and the run was heavy.


 Two days passed, somehow, now all three of my roommates had come, all three partners were very good Vishnu, Pratyusha, Yashwant, and I Dharmendra.  The rest of the story in the next post




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